क्या मुसलमानों ने मन्दिरों को ढाया?
Author Name: अब्दुल्लाह आडीयार

क्या मुसलमानों ने मन्दिरों को ढाया?

इसी तरह का एक निराधार आरोप यह हैं कि मुसलमानों ने भारतीय मंदिरो को ढाया हैं।

ऐसे आरोप लगाते समय हम भूल जाते हैं कि इस तरह की हरकते स्वयं भारत में दूसरे लोगो ने भी की हैं। हमारे यहॉ समनर पंथ वाले मंदिरो को ढाया गया। हम यह भी भूल गये कि नाटा टीनम की मूर्तियो को लूटा गया और वहॉ जो सोना था उसे तिरूमगर्इ उठा ले गये।

हम यह तो कहते हैं कि मुसलमानों ने मन्दिर ढाये, लेकिन हम इसे भूल जाते है कि उन्होने हिन्दू मन्दिरों को जमीनों वक्फ की। मुसलमानों ने अगर कुछ मन्दिरों को ढाया हैं तो उसके कारण कुछ और रहे होंगे। इस्लाम की यह शिक्षा नही हैं कि दूसरों के उपासना स्थलों को तबाह या बर्बाद किया जाये।

एक सज्जन ने जब यह पूछा कि भारत के इतिहास से यह बात मालूम होती हैं कि मुसलमानों ने मन्दिरों को ढाया और मूर्तियो को तोड़ा हैं। इसके बारे में आप क्या कहते हैं? इस पर अडियार जी ने कहा कि-
हकीकत यह हैं कि भारत का जो इतिहास लोगो के हाथों में हैं, वह कोर्इ सच्चा और तहकीक की रोशनी में तैयार किया हुआ इतिहास नही हैं। मुसलमानों और अन्य धर्मो के लोगो के बीच दुश्मनी पैदा करने के उददेश्य से पश्चिम के उपद्रवियों ने यह इतिहास लिखा हैं, अगर यह साबित भी हो जाए कि मुसलमानों ने मन्दिरों को ढाया हैं और मूर्तियों को तोड़ा हैं तो मेरा जवाब यह होगा कि इस्लाम में दूसरे धर्मो के मन्दिरों को ढाने या उन्हे तोड़ने की बिल्कुल अनुमति नही पायी जाती हैं। इस काम के करने वाले चाहे महमूद गजनवी हो या उन की फौज, इसका इस्लाम से कोर्इ ताल्लुक नहीं। बल्कि इस्लामी राज्य तो गैर-मुस्लिमों के पूजा स्थलों की रक्षा करने का जिम्मेदार हैं।

बुतो को पूजना गलत हैं। लोगो में यह चेतना इस्लाम पैदा करता हैं और इसके लिए वह स्पष्ट प्रमाण प्रस्तुत करता हैं। धर्म के सम्बन्ध में कोर्इ जोर-जबरदस्ती नही, यह घोषणा इस्लाम ने स्पष्ट शब्दो मे की हैं। वह चाहता हैं कि लोगो के दिलों की दुनिया शिर्क और कुफ्र से पाक हो और उसमें सत्य का प्रकाश फैल जाय। इसके लिए वह प्रचार और आमंत्रण का तरीका अपनाता हैं। जोर-जबरदस्ती की नीति उसकी अपनी प्रकृति के बिल्कुल प्रतिकूल हैं।

प्यारे नबी स0 ने काबा को बुतो से पाक किया हैं। यह एक ऐतिहासिक सत्य हैं। लेकिन यहॉ बात न भूलना चाहिए कि काबा की हैसियत अल्लाह के घर की हैं। उसे बुतखाना तो लोगो ने अपनी अज्ञानता और उददंडता से बना रखा था (काबा सिर्फ अल्लाह की इबादत के लिए ही बनाया गया था। इस बात को अरब के बुतपूजक भी मानते थे। बाद के जमाने मे अल्लाह के इस घर मे बहुत से बुत लाकर रख दिये गये, जो बिल्कुल गलत था। उन्ही बूतो स0 ने काबा से हटाया और उसे पहले की तरह खालिस अल्लाह की इबादत का घर बना दिया)नबी स0 ने र्इसार्इयों और यहूदियो की इबादतगाहो को ढाया हो इसका कोर्इ उदाहरण नही पेश किया जा सकता।


इस्लाम का प्रचार और तलवार

एक सवाल यह किया गया हैं कि इस्लाम तलवार के जोर से फैला हैं। अपनी निजी खूबियों की वजह से वह दुनिया मे नही फैला।
यह केवल एक दावा हैं जिसके पीछे कोर्इ दलील नही पार्इ जाती हैं, कुरआन ने तो साफ शब्दो में जोर-जबर्दस्ती से काम लेने से रोका हैं।
इस्लाम पर आपत्ति करने वाले-दुनिया के इतिहास को भूल जाते हैं। उन की जुबान खुलती हैं तो इस्लाम के विरूद्ध और निराधार आरोप घड़ने का कर्तव्य निभाया जाने लगता हैं। दुनिया के इतिहास पर नजर डालिए तो मालूम होगा कि बहुत-सी हुकूमतों ने अपने मत और धर्म को ताकत के बुलबुते पर फैलाया हैं। दूर क्यो जाइए। भारत ही के इतिहास को लीजिए। यहॉ बुद्धमत अशोक और हर्ष की हूकूमत की मदद से फैला।

समनरपंथ का भी यही इतिहास हैं। एक समय वह था जब कि भारत के सारे ही राजा-महराजा समनर पंथी थे और भारत पर यही  मत और पंथ छाया हुआ था। इसके बाद बौदिक धर्म (हिन्दू मत) का जमाना आया। इस धर्म ने हूकूमत की शक्ति से दूसरे धर्म वालो को खत्म किया और इस सिलसिले में लोगो को सूली तक पर चढ़ाया गया। यह हैं वह तरीका जिसे अपना कर भारत को एक हिन्दूराष्ट्र बनाने की कोशिश की गयी।

फिर भारतीय शासको ने फौजकशी कर के दूसरे देशों में भी अपने धर्म को फैलाया। जावा, सुमात्रा, कम्बोडिया में आज भी हिन्दू धर्म के चिन्ह और मूर्तिया पार्इ जाती हैं। र्इसार्इ धर्म के मानने वाले शासको ने जब अन्य देशों पर फौजकशी की तो वहॉ उन्होने र्इसार्इयत को भी फैलाने की कोशिश की।

अब अगर यह साबित भी हो कि कुछ मुस्लिम शासको ने इस्लाम के प्रचार में अपने प्रभाव को भी इस्तेमाल किया तो यह कोर्इ निराली गलती नहीं हैै, जिससे इस्लाम को बदमान करने की कोशिश की जाय। आज के इल्मी दौर मे भी बार-बार यह आरोप लगाया जाता हैं कि इस्लाम अपनी शक्ति से नही बल्कि तलवार की शक्ति से फैला है। आश्चर्य तो इस बात पर हैं कि यह आरोप लगाने वालों में ऐसे सत्ताधारी लोग भी नजर आते हैं जिनका अपना हाल यह हैं  िकवे बन्दूक की नाल पर अपने सिद्धान्त और मत को फैलाने का घृणित प्रयास करते हैं लेकिन उनकी निगाह अपनी तरफ नही जाती ।

आज के युग में धर्म के सम्बन्ध में जोर-जबर्दस्ती का सवाल ही नही पैदा होता। हां, अपने विचारों पर कायम रहने और उन को दूसरो तक पहॅुचाने का अधिकार हर एक को प्राप्त हैं। आज के युग में भी इस्लाम स्वीकार करने वालो की संख्या कुछ कम नही हैं। आखिर उन्हे किस तलवार के द्वारा मजबूर किया गया हैं? वह लोहे की तलवार नही हैं बल्कि वह सच्चार्इ की कोशिश हैं जो लोगो को अपनी ओर खींच कर रहती हैं।