मुसलमान रूढ़िवादी और आतंकवादी

धर्म या विश्व राजनीति से संबंधित चर्चाओं में यह प्रश्न प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप् से मुसलमानों पर उछाला जाता हैं। मीडिया के किसी भी साधनों में मुसलमानों को बख़्शा नहीं जाता और इस्लाम तथा मुसलमानों के संबंध में बड़े पैमाने पर ग़लतफ़हमियॉ फैलाई जाती हैं, उन्हे कट्टरवादी के रूप् में दर्शाया जाता है। वास्तव मे ऐसी ग़लत जानकारियॉ और झूठे प्रचार अकसर मुसलमानों के विरूद्ध हिंसा और पक्षपात का कारण बनते हैं। इसका सबसे स्पष्ट उदाहरण अमेरिकी मीडिया द्वारा मुसलमानों के विरूद्ध चलाए जाने वाली मुहिम हैं जो ओकलाहोमा बस धमाके के बाद चलाई गई। प्रेस ने तुरन्त यह एलान कर दिया कि इस धमाके के पीछे ‘मध्य पूर्वी “षडयंत्र‘ काम कर रहा हैं। बाद में अमेरिकी सेना का एक जवान इस कांड में दोषी पाया गया।


अब हम मुसलमानों के रूढ़िवादी और आतंकवादी होने के आरोपों का जायजा लेते हैं:


1- रूढ़िवादी की परिभाषा


रूढ़िवादी उस व्यक्ति को कहते हैं जो किसी आस्था अथवा सिद्धान्त को स्वीकार करते हुए उसकी मौलिक शिक्षाओं का पालन कर रहा हों। एक व्यक्ति जो अच्छा डॉक्टर बनना चाहता हैं, उसके लिए जरूरी हैं कि वह चिकित्सा संबंधी मौलिक नियमों को जाने, उनका अनुसरण करे और उनका अभ्यास करे। दूसरे शब्दों में उसे चिकित्सा के क्षेत्र में रूढ़िवादी होना चाहिए। किसी व्यक्ति को अच्छा गणितशास्त्री बनने के लिए, गणित के मूल नियमों का जानना, उनका अनुसरण करना और उनका अभ्यास करना जरूरी है। उसे गणित के क्षेत्र में रूढ़िवादी होना चाहिए। इसी प्रकार अगर किसी व्यक्ति को अच्छा वैज्ञानिक बनना है तो उसके लिए जरूरी है  कि वह विज्ञान के मौलिक सिद्धान्तों को जाने, उनका पालन करे और उनके अनुसार अभ्यास करे अर्थात उसे विज्ञान के क्षेत्र में रूढ़िवादी होना चाहिए।


2-    सभी रूढ़िवादी एक प्रकार के नही होते


कोई एक ही ब्रश से सभी रूढ़िवादियों को नही रंग सकता। सभी रूढ़िवादी को अच्छे या बुरे, एक दर्जे में नही रखा जा सकता हैं।किसी  भी रूढ़िवादी का दर्जा उसके कार्य क्षेत्र और उसकी गतिविधि पर निर्भर करेगा, जिसमें वह रूढ़िवादी है। एक रूढ़िवादी डाकू अथवा चोर समाज के लिए हानिकारक हैं, अत: वह नापसंदीदा हैं। दूसरी तरफ़ एक रूढ़िवादी डाक्टर, समाज को लाभ पहुॅचाता हैं अत: यह पसंदीदा हैं और बहुत आदर पाता है।


3-    मुसलमान का रूढ़िवादी होना गर्व की बात है


मैं एक रूढ़िवादी मुसलमान हूॅ और अल्लाह की मेहरबानी से इस्लाम के मौलिक सिद्धान्तों और नियमों से परिचित हूॅ और उसके पालन का प्रयास करता हॅॅू। एक सच्चा मुसलमान रूढ़िवादी होने से नही घबराता। मुझे एक रूढ़िवादी मुसलमान होने पर गर्व है क्योंकि मैं जानता हॅू कि इस्लाम के मौलिक सिद्धांत और नियम सारी मानवजाति और सारे संसार के लिए लाभदायक हैं।इस्लाम का कोई एक मौलिक सिद्धांत भी ऐसा नही जो मानवजाति के लिए हानिकारक हो। बहुत से लोग इस्लाम के संबंध में गलत विचार रखते हैं और इस्लाम की अनेक शिक्षाओं को अनुचित मानते हैं। इसका कारण इस्लाम की अपर्याप्त और ग़लत जानकारी है। यदि कोई खुले मस्तिष्क से इस्लाम की शिक्षाओं का तंकीदी (आलोचनात्मक) जायजा ले तो वह इस तथ्य को अस्वीकार नहीं कर सकता कि इस्लाम व्यक्तिगत और सामूहिक दोनो स्तरों पर केवल लाभ ही लाभ से भरा हुआ हैं।


4-    ‘रूढ़िवाद’ शब्द का अर्थ शब्दकोष में


वेबेस्टर्स (webster’s) शब्दकोष के अनुसार ‘रूढ़िवादी’ एक आन्दोलन था जो 20वीं शताब्दी के प्रारंभ में अमेरिकी प्रोटेस्टेन्टस के द्वारा चलाया गया। यह आन्दोलन आधुनिकतावाद की प्रतिक्रिया के रूप में उठा था जो केवल आस्था और नैतिकता ही में नही बल्कि शब्दश: ऐतिहासिक रिकार्ड (तथ्य) के तौर पर भी बाईबिल की सत्यता पर जोर देता था। वह इस बात पर विश्वास करने पर जोर देता था कि बाइबल ईश्वर के शब्द हैं। इस प्रकार रूढ़िवादी शब्द ईसाईयों के उस समूह के लिए प्रयोग किया जाता था जिनका विश्वास था कि बाईबल बगै़र किसी संदेह एंव दोष के ईश्वर के शब्द हैं।


आक्सफोर्ड (Oxford) शब्दकोष के अनुसार रूढ़िवादी का अर्थ हैं, ‘‘किसी भी धर्म, विशेषकर इस्लाम के मूल सिद्धान्तों का पालन करना।’’


5-    एक व्यक्ति को एक ही कार्य के लिए दो भिन्न उपाधियॉ ‘‘आतंकवादी’’ और ‘‘देशभक्त’’


 

भारत की ब्रिटिश शासन से आजादी के पूर्व कुछ क्रान्तिकारियों को जो कि अहिंसा के पक्ष में नही थें ब्रिटिश सरकार ने आतंकवादी कहा । उन्ही व्यक्तियों की भारतवासियों ने प्रशंसा की और उन्हे ‘‘देशभक्त’’ कहा। इस प्रकार एक व्यक्ति को एक ही कार्य के लिए दो भिन्न उपाधियां दी गईं। एक उसको देशभक्त कह रहा हैं तो दूसरा आतंकवादी। वे लोग जिन्होने भारत पर ब्रिटिश शासन को उचित माना, उन लोगों को आतंकवादी कहा गया, जबकि दूसरे वे लोग जो समझते थें कि ब्रिटिश को भारत पर शासन करने का कोई अधिकार नही हैं उन्होने उनको देशभक्त एवं स्वंतंत्रता सेनानी का नाम दिया। अत: यह महत्वपूर्ण हैं कि एक व्यक्ति के प्रति फैसला करने से पूर्व उसकी पूरी बात सुनी जाए। दोनो पक्षों के तर्को को सुना जाए, स्थिति का जायजा़ लिया जाए और कारण और उद्देश्य पर विचार किया जाए।