‘‘मुसलमानों! कोर्इ जाति (पुरूषो का कोर्इ समूह) किसी जाति (पुरूषों के किसी समूह न करे। संभव हैं वे अच्छे हो। और औरतें (भी दूसरी) औरतों का उपहास न करे, हो सकता है कि वे उनसे अच्छी हों। ( कुरआन, 49 :11)
7- दुर्भावना तथा परनिन्दा की मनाही
‘‘(किसी के प्रति) अत्याधिक गुमान से बचो क्योकि अनेक पाप होते हैं और एक-दूसरे की गुप्त बातों की जिज्ञासा न किया करो और न एक-दूसरे के पीठ निन्दा किया करो। क्या तुम में से कोर्इ इस बात को पसंद करता हैं कि अपने मुर्दा भार्इ का गोश्त खाए। उससे तो तुम अवश्य घृणा करोगे। (इसलिए परनिन्दा न किया करो) और र्इश्वर का भय रखों।’’ (कुरआन, 49 :12)
8- कुरआन की एक सर्वागीण शिक्षा
कुरआन मे एक व्यापक व सर्वागीण शिक्षा दी गर्इ हैं जो यह हैं-
(1) ‘‘तुम्हारे पालनकर्ता का आदेश है कि तुम उसके सिवा किसी की उपासना न करो। (17 : 23)
(ii) ‘‘और माता-पिता के साथ सदव्यवहार करते रहा करो। यदि उनमें एक या दोनो बुढ़ापे को पहुंच जाएं तो उनको ‘उफ’ तक न कहो और न उनको झिड़को, और उनसे बातचीत करो तो आदब से और उनके सामने नम्रतापूर्वक स्नेह के साथ झुके रहो और उनके लिए (र्इश्वर से) प्रार्थना किया करो कि ऐ पालनहार ! तू इन दोनो पर कृपा कर, जिस प्रकार उन्होने मेरे बचपन में (स्नेह तथा वात्सल्य के साथ) मेरा लालन-पालन किया।’’ (17 : 23-24)
(iii) ‘‘निकट संबंधियों, दीन-दुखियों तथा यात्रियों को उनका हक पहुंचाओं (अर्थात आर्थिक सहायता दो)।’’ (17 : 26)
(iv) ‘‘धन को निरर्थक कामों में खर्च न करो। निस्सन्देह धन को निरर्थक कामों मे खर्च करनेवाले शैतान के भार्इ हैं और शैतान अपने पालनहार का कृतध्न हैं।’’ (17 : 26-27)
(v) ‘‘यदि तुम (किसी दरिन्द्र से इसलिए) मुंह फेरते हो कि तुम अपने पालनहार की कृपा (धन के) आने की प्रतीक्षा मे हो कि तुमकों उस (के मिलने) की आशा है तो उससे नम्रता के साथ बात कह दिया करो।’’ (कुरआन, 17 : 28)
(vi) ‘‘तुम ने तो ऐसा किया करो कि अपने हाथ को अपनी गर्दन से बांध लो (कि खर्च करना ही बन्द कर दो) और न उसको बिलकुल खोल ही दो (कि सब कुछ खर्च करके निर्धन हो जाओं) फिर निंदित तथा असहाय होकर बैठ जाओं। ‘‘ (कुरआन, 17 : 29)
(vii) ‘‘और निर्धनता के डर से अपनी संतान का वध न करो। हम ही उनको जीविका देते हैं और तुमको भी।’’
(viii) ‘‘और व्यभिचार के निकट भी न फटको क्योकि वह अश्लील कर्म तथा बुरा रास्ता हैं।’’ (कुरआन, 17 : 32)
(ix) ‘‘और जिस जीव को मारना र्इश्वर ने वर्जित ठहरा दिया हैं उसे मार न डालो, यह और बात हैं कि न्याय की अपेक्षा यही हो।’’ (कुरआन, 17 :33)
(x) ‘‘ और अनाथ के धन के पास भी न जाओं। हां उस ढंग से उसका उपयोग कर सकते हो जो सर्वोत्तम हो, यहां तक कि वह युवावस्था को पहुंच जाए।’’ (कुरआन, 17 : 34)
(xi) ‘‘और वचन का पालन किया करो। अवश्य ही वचनों के विषय में (र्इश्वर के यहां) पूछ होगी।’’
(xii) ‘‘जब कोर्इ चीज नापकर दिया करो तो नाप के बरतन को पूरा भरा करो और जब तौलकर दो तो तराजू सीधी रखकर तौला करो। यही उत्तम तथा परिणाम की दृष्टि से बहुत अच्छा तरीका हैं।’’
(xiii) ‘‘ और जिस बात का तुझे ज्ञान नही, उसके पीछे न पड़। निस्संदेह कान, आंख और दिल (सब अंगो) के बारे में पूछ होगी (कि किससे क्या लिया)।’’ (कुरआन, 17 : 36)
(xiv) ‘‘और धरती पर अकड़कर न चल। तू न जमीन को फाड़ सकेगा और न पर्वत की लम्बार्इ को पहुच पाएगा। (कुरआन, 17 : 37)
‘‘इन सब कामों की बुरार्इ तेरे पालनहार के निकट अत्यन्त अप्रिय हैं।’’ (कुरआन 17 : 38)