इस्लाम में विरासत का क़ानून

इस्लाम में विरासत का क़ानून

‘विरासत’ एक अति प्रचलित शब्द है जिसका भावार्थ होता है अपने पूर्वजों से कुछ प्राप्त करना, चाहे वह धन-सम्पत्ति के रूप में हो या आदर्श, उपदेश अथवा संस्कार के रूप में। चिकित्सा विज्ञान का विश्वास है कि बीमारियां भी विरासत में प्राप्त होती हैं।

इस्लामी शरीअत में इस ‘पारिभाषिक’ शब्द का उपयोग उस धन-सम्पत्ति के लिए किया जाता है जो मृत्यु के समय मृतक के स्वामित्व में रह गई हों और जिसे दूसरों में वितरित किया जाएगा। इस्लामी शरीअत में इस वितरण का पूर्ण क़ानून है जिसे इस्लामी विरासत का क़ानून’ कहा जाता है।

इस्लाम ईश्वर द्वारा निर्धारित एक जीवनशैली का नाम है जो सम्पूर्ण मानव जीवन के लिए मार्गदर्शन और क़ानून प्रदान करके एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहता है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति एक सुखी जीवन व्यतीत कर सके और उसकी समृद्धि और विकास के मार्ग में कोई बाधा उत्पन्न न हो।

'परिवार' समाज की आधारभूत इकाई है इसलिए इस्लाम ने उसे सुदृढ़ करने पर बहुत ज़ोर दिया है। इस्लाम परिवार को एक संस्था के रूप में देखता है। जिस प्रकार एक संस्था को सुचारू रूप से चलाने के लिए सदस्यों में अधिकार व उत्तरदायित्व का निर्धारण आवश्यक है उसी प्रकार इस्लाम भी इस परिवार रूपी संस्था में प्रत्येक सदस्य के अधिकार व उत्तरदायित्व का निर्धारण करता है और उनसे आशा करता है कि वे इस संस्था को सुचारू रूप से चलाने में अपना पूर्ण सहयोग देंगे।

परिवार में किसी की मृत्यु हो जाने से एक सदस्य कम अवश्य हो जाता है पर संस्था समाप्त नहीं होती। ऐसी परिस्थिति में इस्लाम यह उचित समझता है और सुनिश्चित भी करता है कि मृतक की सम्पत्ति का वितरण संस्था के बाक़ी सदस्यों (महिला और पुरुष दोनों) में उनके उत्तरदायित्व के अनुसार हो। अधिकार एवं उत्तरदायित्व के चयन में सदस्यों को आपसी कलह और संघर्ष से बचाने के लिए ईश्वर ने इसका निर्धारण स्वयं कर दिया और मृतक की सम्पत्ति के वितरण का एक विस्तृत क़ानून भी प्रदान कर दिया जिससे उसका वितरण सुचारू रूप से हो सके। इसी क़ानून को ‘इस्लामी विरासत के क़ानून’ के नाम से जाना जाता है।

पवित्र क़ुरआन की निम्नलिखित आयतों में विस्तार से इसका विवरण आया है–

क़ुरआन 2:180, 240

क़ुरआन 4:7-12, 14, 19, 33, 176

क़ुरआन 5:75

क़ुरआन 33:6

इस्लाम के अनुसार इसका अनुपालन हर मुसलमान के लिए अनिवार्य है और मृतक की समस्त चल व अचल संपत्ति का वितरण किया जाएगा। मरने वाला चाहे पुरुष हो या महिला, ईश्वरीय आदेशों के अनुसार उसपर यह क़ानून लागू होगा नियमों के हिसाब से मृतक के पुरुष सम्बन्धियों के साथ साथ उसकी महिला सम्बन्धियों को भी हिस्सा दिया जाएगा। इस्लाम महिला और पुरुष में कोई भेदभाव स्वीकार नहीं करता। अल्लाह का आदेश है कि किसी की मृत्यु के पश्चात् उसकी संपत्ति का वितरण शीघता से कर दिया जाना चाहिए। इसके अनुपालन से फ़रार, ईश्वर के प्रकोप को आमंत्रित करता है