मानवता का आदर्श
Author Name: सनाउल्लाह

मानवता का आदर्श

पैग़म्बर मुहम्मद (सल्ल0) की शिक्षाओं की एक झलक

(क़ुरआन और हदीसों से संकलित)

  1.  सम्पूर्ण सृष्टि का सृजनहार एक प्रभु है। वह अत्यन्त दयावान और कृपालु है। उसी की भक्ति करो और उसी की आज्ञा मानो।
  2. ईश्वर ने मानव पर अनगिनत उपकार किए हैं। धरती और आकाश की सारी शक्तियां मानव की सेवा मे लगा दी हैं। वही धरती और आकाश का मालिक है, वही तुम्हारा प्रभु है।
  3. ईश्वर (वास्तविक स्वामी) को छोड़कर अन्य की पूजा करना सबसे बड़ा ज़ुल्म और अत्याचार है।
  4. ईश्वर की अवज्ञा करके तुम उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकते। आज्ञाकारी बनकर रहो, इसमें तुम्हारा अपना भला है।
  5. ईश्वर की याद से आत्मा को शांति मिलती है। उसकी पूजा से मन का मैल दूर होता है।
  6. ईश्वर की निशानियों (दिन, रात, धरती, आकाश, पेड़-पौधे, जीव-जन्तु आदि की बनावट) पर विचार करो। इससे प्रभु पर विश्वास दृढ़ होगा और संकुचित विचारों से छुटकारा प्राप्त होगा।
  7. मैं (हज़रत मुहम्मद सल्ल0) ईश्वर की ओर से संसार का मार्गदर्शक नियुक्त किया गया हूँ। मार्गदर्शन का कोई बदला तुमसे नहीं चाहता। मेरी बातें सुनो और मेरी आज्ञा का पालन करो।
  8. में कोई निराला और अजनबी पैग़म्बर नहीं हूँ। मुझसे पहले संसार मे मार्गदर्शन के लिए बहुत-से रसूल आ चुके हैं, अपने धर्म-ग्रन्थों में देख लो या किसी ज्ञानी व्यक्ति से मालूम कर लो।
  9. मैं पहले के पैगम्बरों की शिक्षा को पुन: स्थापित करने और कपटाचारियों के बन्धन से मानव को मुक्त कराने आया हूँ।
  10. मैं इसलिए भेजा गया हूँ कि नैतिकता और उत्तम आचार को उच्चतम शिखर तक पहुंचा दूँ।
  11. मैं लोगों की कमर पकड़-पकड़कर आग में गिरने से बचा रहा हूँ, किन्तु लोग हैं कि आग ही की ओर लपक रहे हैं।
  12. मैं दुनियावालों के लिए रहमत बनाकर भेजा गया हूँ। तुम लोगों के लिए आसानियां पैदा करो; मुसीबतें न पैदा करो।
  13. माँ-बाप की सेवा करो। उनके सामने ऊंची आवाज़ से न बोलो। उन्होने तुमपर बड़ा उपकार किया है, अत: तुम उनके आज्ञाकारी बनकर रहो।
  14. माँ-बाप यदि अन्याय का आदेश दें तो न मानो, बाकी बातों में उनकी आज्ञा का पालन करो।
  15. सारे मानव एक प्रभु के पैदा किए हुए हैं, एक माँ-बाप की संतान हैं। उनके बीच रंग-नस्ल, जाति, भाषा, क्षेत्रीयता आदि का भेदभाव घोर अन्याय है।
  16. सारे लोग आदम की सन्तान हैं, उनसे प्यार करो घृणा न करो। उन्हे आशावान बनाओ, निराश मत करो।
  17. मानव में श्रेष्ठ वह है जो दूसरों का हितैषी, पवित्र आचरणवाला और प्रभु का आज्ञाकारी है।
  18. तुम धरतीवालों पर दया करो, आकाशवाला (प्रभु) तुम पर दया करेगा।
  19. वह व्यक्ति सबसे अच्छा है जो अपने घरवालों और पड़ोसियों के लिए अच्छा है।
  20. औरतों, गुलामों और यतीमों (अनाथों) पर विशेष रूप से दया करो।
  21. जो अपने बेटे और बेटियों के बीच भेदभाव न करे और बेटियों का ठीक से पालन-पोषण करे, वह स्वर्ग में जाएगा।
  22. जो बड़ो का आदर और छोटो से प्रेम न करे वह हम में से नहीं।
  23. तुम सांसारिक जीवन में मस्त होकर भूल मत जाओ, तुम सबको अपने किए हुए कर्मों का हिसाब अपने प्रभु को देना है। परलोक की सफ़लता ही वास्तविक सफ़लता है।
  24. परलोक की यातना बड़ी कठोर है। वहाँ कुल-वंश, सगे-सम्बन्धी, धन-दौलत और किसी की सिफ़ारिश कुछ काम आनेवाली नहीं।
  25. ईश्वर की आज्ञा का पालन और उत्तम आचरण ही (उसकी यातना से) बचने का एक मात्र साधन है।
  26. अपने को और अपने घरवालों को नरक की अग्नि से बचाओ।
  27. ईश-मार्ग में खर्च करके स्वंय को नरक की अग्नि से बचाओ। तुम्हारे माल में तुम्हारे सम्बन्धियों, गरीबों, अनाथों का भी हक़ है। उनके हक़ अदा करो।
  28. दूसरों का धन अवैध रूप से न खाओ। तिजारत या समझौते के द्वारा वैध रूप से धन प्राप्त करो।
  29. चीज़ों में मिलावट न करो, नाप-तौल में कमी न करो। व्यापार में धोखा न दो। जो धोखा देता है वह हम में से नहीं।
  30. बाज़ार में भाव बढ़ाने के लिए (ग़ल्ला आदि) चीज़ों को रोककर (ज़खीरा करके) मत रखो। ऐसा करनेवाला घोर यातना का अधिकारी है।
  31. पैसे को गिन-गिनकर जमा न करो और न फ़िज़ूलखर्ची करो, मध्यम मार्ग को अपनाओ।
  32. दूसरों के अपराध क्षमा कर दिया करो। दूसरों के ऐब का प्रचार न करो उसे छिपाओ, प्रभु तुम्हारे ऐबों पर परदा डालेगा।
  33. झूठ, चुग़लखोरी, मिथ्या आरोप से बचो। लोगों को बुरे नाम से न पुकारो।
  34. अश्लीलता और निर्लज्जता के क़रीब भी न जाओ, चाहे वह खुली हो या छिपी।
  35. दिखावे का काम न करो। दान छिपाकर दो। उपकार करके एहसान मत जताओ।
  36. रास्ते से कष्टदायक चीज़ों (कांटे, पत्थर आदि) को हटा दिया करो।
  37. धरती पर नर्म चाल चलो, गर्व और घमण्ड न करो।
  38. जब बोलो अच्छी बात बोलो अन्यथा चुप रहो।
  39. अपने वचन और प्रतिज्ञा को पूरा करो।
  40. सत्य और न्याय की गवाही दो, चाहे तुम्हारी अपनी या अपने परिवार-जनों की ही हानि क्यों न हो।
  41. अन्याय के विरूद्ध संघर्ष करनेवाला ईश्वर का प्रियपात्र होता है।
  42. किसी बलवान को पछाड़ देना असल बहादुरी नहीं, बहादुरी यह है कि आदमी गुस्से पर क़ाबू पाए।
  43. मज़दूर का पसीना सूखने से पहले उसकी मज़दूरी अदा करो। किसी सेवक से उसकी शक्ति से अधिक काम न लो, उसके आराम का ख़याल रखो। जो खुद खाओ उसे भी खिलाओ और जो ख़ुद पहनो उसे भी पहनाओ।
  44. जानवरों पर दया करो, उनकी शक्ति से अधिक उनसे काम न लो।
  45. किसी वस्तु का आवश्यकता से अधिक प्रयोग न करो। पानी का दुरूपयोग न करो, चाहे तुम नदी के किनारे ही क्यों न हो।
  46. अपने शरीर, वस्त्र और घर को पाक-साफ रखो। जब सोकर उठो तो सबसे पहले अपने दोनों हाथों को धो लो। तुम्हे पता नहीं कि नींद में हाथ कहाँ-कहाँ गए हैं।
  47. युद्ध में औरतों, बच्चों, बीमारों और निहत्थों पर हाथ न उठाओ। फलवाले पेड़ों को न काटो।
  48. युद्ध के बन्दियों के साथ अच्छा व्यवहार करो, यातनाएं न दो। जो कोई बुराई को देखे, तो भरसक उसे रोकने की कोशिश करे, यदि रोकने की क्षमता न हो तो दिल से उसको बुरा समझे।
  49. सारे कर्मों का आधार नीयत (इरादा) है। ग़लत इरादे के साथ किए गए अच्छे कर्मों का भी कोई फ़ल ईश्वर के यहाँ नहीं मिलेगा।
  50. प्रभु-मिलन की आशा के साथ जीवन व्यतीत करो। आशाओं के अनुरूप ही मानव के क्रिया-कलाप होते हैं।