जानवरों को ज़बह करने के इस्लामी तरीके़ पर, जिसे ‘ज़बीहा’ कहा जाता है, बहुत से लोगों ने आपत्ति की है। इस संबंध में हम निम्न बिन्दुओं पर विचार करते हैं जिनसे यह तथ्य सिद्ध होता है कि ज़बह करने का इस्लामी तरीका माननीय ही नहीं बल्कि वैज्ञानिक दृष्टि से भी श्रेष्ठ है:
1- जानवर को ज़बह करने का इस्लामी तरीक़ा:
जानवर को ज़बह करने के लिए अरबी शब्द ‘ज़क्कैतुम’ प्रयुक्त किया जाता है। जिस क्रिया से यह शब्द बना है उसका अर्थ है 'पवित्र करना' और 'शुद्ध करना'। इस्लामी तरीक़े से जानवर को ज़बह करने हेतु निम्न शर्तें पूरी करना आवश्यक है:
2- खून कीटाणुओं और जीवाणुओं का स्रोत है I
रक्त में कीटाणु, जीवाणु, विषाणु इत्यादि पाए जाते हैं, इसलिए ज़बह करने का इस्लामी तरीक़ा अधिक स्वच्छ होता है क्योंकि खून, जिसमें कीटाणु, जीवाणु इत्यादि पाए जाते हैं, जो अनेक रोगों का कारण बनते हैं, इस प्रक्रिया से बह जाते हैं।
3- मांस लंबे समय तक ताज़ा रहता है I
दूसरे ढंग की अपेक्षा इस्लामी ढंग से ज़बह किया हुआ मांस लंबे समय तक ताज़ा रहता है, क्योंकि मांस में खून कम मात्रा में होता है।
4- जानवर पीड़ा महसूस नहीं करते I
गर्दन की नली को तेज़ी से काटने से मस्तिष्क नाड़ी की तरफ रक्त का बहाव बंद हो जाता है। यह नाड़ी, पीड़ा का स्रोत है। अत: जानवर पीड़ा अनुभव नहीं करता । मरते समय जानवर जो संघर्ष करता है और लात मारता है, ऐसा पीड़ा के कारण नहीं होता, बल्कि शरीर से रक्त बह जाने के कारण पुट्ठों के सुकड़ने और फैलने से होता है। जानवर थोड़ी सी पीड़ा अवश्य महसूस करता है, परन्तु वैज्ञानिकों ने इसको अत्यंत क्षणिक और मात्र 2-3 सेकण्ड तक रहने वाली बताया है I इसके विपरीत जानवरों को ज़बह करने के जो अन्य रूप हैं, जैसे झटका या स्टन (Stun) कर देना, तो इसमें पीड़ा अत्यंत तीव्र और देर तक रहती है, जब तक उसकी मृत्यु नहीं हो जाती I स्टन (Stun) का तरीक़ा विदेशों में उपयोग में लाया जाता है I इसमें जानवर के सर पर लगने वाली चोट उसके मस्तिष्क को नुक़सान पहुँचाती है और इससे उत्पन्न होने वाली पीड़ा तब तक रहती है जब तक उसे ज़बह करके मार नहीं दिया जाता I
अत: यह बात बहुत ज़्यादा उपयुक्त प्रतीत होती है कि जो तरीक़ा अल्लाह ने बताया है, वही सबसे उचित है, क्योंकि इंसानों और जानवरों के शरीर की रचना को उससे बेहतर कोई नहीं जा सकता I